संथारा साधु का तीसरा मनोरथ, मोक्ष का सर्वोत्तम पथ

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जयपुर।

संथारा साधु का तीसरा मनोरथ, मोक्ष का सर्वोत्तम पथ

मालवीय नगर स्थित अणुविभा केंद्र के पास समाधि स्थल पर तेरापंथ धर्म संघ की 'शासनश्री' साध्वी विनयश्री जी-द्वितीय (श्री डूंगरगढ़) के गुरुवार को संथारे का पांचवा दिन था। मुनि तत्त्वरुचि जी 'तरुण' ने संथारे के विषय में बताया कि संथारा साधु का तीसरा मनोरथ है और मोक्ष का सर्वोत्तम पथ है। उन्होंने कहा कि संथारा ग्रहण करने वाले के मन में न जीने की कामना, न मरने की इच्छा।
वह सिर्फ कर्म निर्जरा (कर्म काटने) की भावना से इसे स्वीकार करता है। कर्म संसार भ्रमण का कारण है। तप कर्म मुक्ति का साधन है। कर्म मुक्त आत्मा परम को और परम आत्मा ही परमात्मा कहलाती है। मुनि तत्त्वरुचि जी ‘तरुण’ ने मौके पर साध्वीश्री के संथारे के उपलक्ष में स्वरचित गीत का संगान किया तथा जयाचार्य जी की रचना ‘आराधना’ की आठवीं ढ़ाल गा कर सुनायी। साथ ही मुनि संभवकुमार जी ने आध्यात्मिक मंत्रों का जप अनुष्ठान करवा कर सभी को मंत्रमय बना दिया।
इस अवसर पर सेवारत साध्वी जगवत्सला जी, साध्वी अतुलप्रभा जी, साध्वी सहजयशा जी, राजस्थान सरकार के मंत्री गौतम दक की धर्मपत्नी सपना दक, विमला पोकरना, अविनाश पोकरना, अशोक पोकरना, ज्ञानशाला क्षेत्रीय संयोजिका रितु टोडरवाल, उपासिका गुलाब बच्छावत, कांता बैद, पुष्पा बैंगानी, पिंकी बैंगानी आदि उपस्थित थे। इसके साथ ही संथारारत साध्वीश्री के दर्शन-सेवा करने वालों का दिन भर तांता लगा हुआ है। तेरापंथ महिला मंडल (शहर) और तेरापंथ महिला मंडल (सी-स्कीम) तथा तेरापंथ युवक परिषद सहित तेरापंथ और जैन समाज के श्रावक-श्राविकाएं अखंड जप अनुष्ठान में सहभागी बनकर स्वयं को धन्य बना रहे हैं।