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आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष : ‘गुरु को कैसे देखें’ विषय पर विशिष्ट समायोजन
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, किलपॉक के तत्वावधान में आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष, भिक्षु चेतना वर्ष के उपलक्ष्य में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। 'How to see a 'GURU' (गुरु को कैसे देखें) विषय पर यह विशिष्ट समायोजन युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के शिष्य मुनि मोहजीत कुमार जी के पावन सान्निध्य में संपन्न हुआ। मुख्यवक्ता गुरु महात्रिया ने अपने संबोधन में गुरु के वास्तविक स्वरूप और जीवन में उनकी महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने श्रोताओं को समझाया कि गुरु को केवल बाहरी रूप से नहीं, बल्कि उनके ज्ञान और चेतना के स्तर से देखना चाहिए। इस अवसर पर मुनि जयेश कुमार जी ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए गुरु-शिष्य संबंध पर गहराई से प्रकाश डाला। उन्होंने एक महत्वपूर्ण सूत्र देते हुए कहा, ‘गुरु भगवान नहीं है, लेकिन वे भगवान तक पहुँचने का मार्ग हैं। तो फिर भगवान कौन है?
भगवान आप स्वयं हैं।’ मुनिश्री ने इस बात को समझाते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर भगवत्ता है, और गुरु वही हैं जो हमें अपनी उस आंतरिक परमात्मा तत्व को पहचानने और उसे प्रकट करने का मार्ग दिखाते हैं। उनके इस उद्बोधन ने आचार्य भिक्षु के जीवन और उनके अवदानों को एक नई दृष्टि से प्रस्तुत किया। इस आध्यात्मिक समायोजन में 1200 से अधिक जैन एवं अजैन श्रोताओं इस ज्ञानवर्धक सत्र का लाभ उठाया। कार्यक्रम के सफल आयोजन में तेरापंथ युवक परिषद और तेरापंथ महिला मंडल, किलपॉक की सक्रिय भूमिका रही।