नमो नमाम्यहं महाश्रमणीवरं
डॉ0 साध्वी सुधाप्रभा
महासाधिका साध्वीप्रमुखा! अनुपम तेरी साधना।
सतिशेखरे! चाहते तेरी, कोड़ दीवाली शासना।
नमो नमाम्यहं महाश्रमणीवरं, नमो नभाम्यहं महाश्रमणीवरं।
वंदे जगजननीं, वंदे माँ अवनीं, वंदे जगजननीं, वंदे माँ अवनीं॥
तुलसी प्रभु ने कहा था तुमको, ‘तेरापंथ की तरुणिमा’।
तेजोमय मुखमंडल पर है, दिनकर जैसी अरुणिमा।
अष्टसिद्धियाँ, नवनिधियाँ तेरे, चरणाम्बुज की अनुचारी।
मंगलमय शुभ-दर्शन तेरा, वाणी तेरी मनहारी।
कलियुग में भी सतयुग जैसी, लगती तेरी उपासना॥
मन-इच्छित फल देने वाली, कामकुंभ सी है काया।
कल्पवृक्ष-चिंतामणी की हो, सचमुच में तुम प्रतिछाया।
दुर्गा-लक्ष्मी-सरस्वती-सी, अद्भुत है तेरी माया।
महासागर-सी ममता तेरी, देखा तुममें माँ का साया।
तेरापंथ के भव्य भाल पर, चमक रही ज्यों ज्योत्सना॥
मानसरोवर हो तुम गण की, हंस श्रेणी कल्लोल करे।
सुधा-अम्बु का पान करें हम, मानस से आमोद झरे।
मोती-सा है निर्मल जीवन, मिसरी-सा व्यवहार है।
चिंतन है आकाश-सरीखा, धवल दुग्ध आचार है।
आनंद-निर्झरणी में नहाएँ, यही हमारी भावना॥
चयन-दिवस की स्वर्ण-जयंती, गण में आज दीवाली है।
संघ-समूचा तुम्हें बधाए, आई भोर रुपाली है।
तन से दूर भले ही हों हम, मन से तेरे पास हैं।
वरद-हस्त हम पाएँ हरपल, यही हमारी आस है।
वरदायिनी! दो वर ऐसा, फल जाए मम कामना॥
लय : आओ, बच्चों तुम्हें दिखाएँ----