साध्वीप्रमुखाश्री जी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में
अमृत अभ्यर्चना
साध्वी मंगलप्रज्ञा
धरती अम्बर के कण-कण में उत्साह अनोखा छाया है।
मनोनयन दिवस इक्यावनवांँ साध्वीप्रमुखा का आया है॥
हर दिवस सुनहला भोर रूपाली जीवन-धन आनंद भरा,
अमृतवर्षायी जलधर की अमृत बूँदों से जीवन हरा-भरा,
दिव्य पुरुष तुलसी की दिव्य दृष्टि, उपहार अनूठा पाया है॥
संघ क्षितिज के भव्य भाल पर हुई सुशोभित संघशोभिनी,
कनकप्रभा आभा से मंडित रवि किरणों-सी विश्वमोहिनी,
सूरजतनये! तव प्रभा-विभा से संघ शतदल विकसाया है॥
सौम्य मृदुल व्यवहार तुम्हारा करता नव ऊर्जा संचार,
प्रमुदित करते भूमंडल को हिमगिरि से तव उन्नत विचार,
जाग उठा तेजस्वी साध्वी समुदाय, नेतृत्व तुम्हारा पाया है॥
वर्धापन के शुभ अवसर पर स्वीकार करो अनंत उद्गार,
तुम जीओ साल हजार हर बरस के दिवस हो पचास हजार,
प्रकर्ष प्राप्त सौभाग्य हमारा वर दिव्य खजाना पाया है॥
साध्वीप्रमुखा की परंपरा में अमृत महोत्सव प्रथम मिला,
पुलकित हर्षित संघनगर मानस पारिजात है खिला खिला,
गुरुवर महाश्रमण की कृपा दृष्टि से अभिनव अवसर पाया है॥