प्रभु महाश्रमण तुम मेरे अंतर के राम हो

प्रभु महाश्रमण तुम मेरे अंतर के राम हो

साध्वी प्रबुद्धयशा 

बच्चा सा----
एक दिन आचार्यवर ने फरमाया
दवाई आदि बराबर चलती है?
साध्वियाँतहत्
आचार्यवरआहार अपने आप करती है क्या?
आहार की रुचि रहती है?
जिनप्रभाजीआहार करवाना पड़ता है। प्रबुद्धयशाजी करवाती हैं। ये अपने हाथ से नहीं खाती हैं। कभी-कभी निगलने में भी कठिनाई होने लगी है।
आचार्यवरहाँ! ए तो एकदम बच्चा सा हूग्या है।
ए तो कुछ मांगै कोनी। जियां मां बच्चा को ध्यान राखै। बच्चा ने दूध पिलाणो हुवै और वो नहीं पीवै तो बीं रै एक चपत लगा देवै। बो रोतो रैवे तो मुँह खुल ज्यावै, चम्मच स्यूं दूध पिलाता रेंवै। दूध उतरतो जावै। आं रे ओ तो संभव कोनी। पर ए भी बच्चा सा हूग्या है। किसी दवाई कणां देणी है। कांई आहार पाणी देनो है आदि-आदि छोटी-मोटी सब बातां को साध्वियाँ ने पूरो ध्यान राखणो चाहिये और आं री अच्छी परवरिश हूणी चाहिजै।
साध्वियाँतहत् गुरुदेव।
साध्वीप्रमुखाश्रीजीगुरुदेव! सहयां खूब मनोयोग स्यूं दिन-रात सेवा कर रह्या है। सेवा में पूरी तरह स्यूं जागरूक है।
पढाई-लिखाई सब गौण
परमपूज्य आचार्यप्रवर हमें उनकी सेवा और उनकी चित्त समाधि के लिए बार-बार प्रेरणा दिलवाते थे। एक दिन फरमायातुम साध्वियों को भी निराश नहीं होना चाहिए। मन में भावना रखो इन्हें खड़ा करना है। सेवा करना है। बहुत, बहुत, बहुत ही अच्छा काम है। महान निर्जरा का काम है। निर्जरा के साथ अच्छा पुण्यार्जन भी हो सकता है। तुम्हें पुण्य के लिए नहीं निर्जरा और इसकी चित्त समाधि के लिए सेवा करनी है। तुम लोगों के लिए सेवा कार्य ही मुख्य है। अभी पढ़ाई-लिखाई सब गौण है। इसके मन में शांति रहे, प्रसन्‍नता रहे।
साध्वियाँतहत् गुरुदेव! आपश्री ने बहुत कृपा करवाई।
हम ही आएँगे
29 अक्टूबर को परम श्रद्धेय आचार्यवर भिक्षु विहार भीलवाड़ा से विहार कर पुन: ‘महाश्रमण सभागार’ में पधारे। पधारते ही प्रवचन करवाया। फिर प्रातराश किया। उसके बाद पुछवायाहम चंद्रिकाश्री जी को दर्शन देने कब आएँ?
साध्वी सुमतिप्रभाजी जानकारी कर निवेदन करके आई। पूज्यप्रवर ने लगभग 12:25 पर पधारने का फरमाया। जैसे ही चंद्रिकाश्रीजी को पता चला कि आचार्यश्री पधार रहे हैं। तो उन्होंने कहागुरुदेव आज विहार करके पधारे हैं। अभी गुरुदेव के बहुत श्रम हुआ है। मैं स्वयं ही व्हीलचेयर से वहाँ जाकर दर्शन करके आ जाऊँगी। मुझे अभी व्हीलचेयर में ले चलो। आचार्यप्रवर को मेहनत मत करवाओ।
जिनप्रभाजीमैं गुरुदेव को तुम्हारी भावना निवेदन कर आती हूँ। फिर व्हीलचेयर से ले चलेंगे। साध्वीश्री ने जाकर गुरुदेव से निवेदन किया। गुरुदेव ने फरमायानहीं, नहीं हम ही आएँगे।
हम नतमस्तक थे गुरुदेव के कृपाभाव के प्रति।
आधा घंटा का कोर्स
एक दिन आचार्यश्री ने फरमायाजप स्वाध्याय क्या चलता है?
हमने कहानियमित एक घंटा नवकार मंत्र का जप, एक घंटा ॐ भिक्षु का जप, तेरापंथ प्रबोध, संती कुंथु की माला, दसवेआलियं का एक अध्ययन और भी अन्य माला जाप। ‘णमो सिद्धाणं’ का जप भी बराबर चल रहा है।
साध्वी जिनप्रभाजीमुख्यनियोजिकाजी भी रोज पधारते हैं। मंत्र का जप करवाते हैं। बहुत प्रेरणा दिलवाते हैं।
आचार्यवर(प्रसन्‍नता के साथ), अच्छा। जाप आदि स्वास्थ्य की द‍ृष्टि से चल रहे हैं। ये सब शरीर की द‍ृष्टि से हैं। आत्मा की द‍ृष्टि से भी कुछ चलना चाहिए।
चंद्रिकाश्रीजीतहत् गुरुदेव! कृपा करवाओ। आत्मा की द‍ृष्टि से बहुत जरूरी है।
आचार्यवरप्रतिदिन एक साध्वी दसवेआलियं का चौथा अध्ययन सुनाएँ। और आराधना की एक-एक ढाल सुनाएँ। हमारी ओर से आत्मा के लिए यह आधा घंटे का कोर्स है।
आदरणीया साध्वीवर्याजी प्राय: प्रतिदिन उन्हें आराधना की एक ढाल सुनाते। वे बड़ी तन्मयता से सुनती। आचार्यवर भी बार-बार पुछवाते क्रम बराबर चल रहा है ना। (क्रमश:)