सेवा की भावना हमारे धर्मसंघ के लिए मंगलकारी-कल्याणकारी है : आचार्यश्री महाश्रमण
बीदासर, 5 फरवरी, 2022
माघ शुक्ला पंचमी, त्रिदिवसीय 158वें मर्यादा महोत्सव के प्रथम दिवस का आयोजनबीदासर का रजत मर्यादा महोत्सव प्रज्ञा-पुरुष श्रीमद् जयाचार्य ने वि0सं0 1921 माघ शुक्ला सप्तमी को बालोतरा में मर्यादा महोत्सव का शुभारंभ आचार्य भिक्षु के अंतिम मर्यादा लिखत के आधार पर किया था। तब से अनवरत यह क्रम प्रति वर्ष आयोजित होता आ रहा है। तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु के ग्यारहवें पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल मंत्रोच्चार के साथ ही 158वें मर्यादा महोत्सव की घोषणा एवं मर्यादा पत्र को स्थापित करते हुए फरमाया कि आज जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के सन् 2022 के मर्यादा महोत्सव के त्रिदिवसीय कार्यक्रम के शुभारंभ की मैं घोषणा करता हूँ। मर्यादा पत्र में जो मर्यादाएँ हैं, उनके प्रति सम्मान प्रकट करते हुए इस मर्यादा पत्र की जो भिक्षु स्वामी से जुड़ा हुआ है, इसकी संस्थापना करता हूँ। मुनि दिनेश कुमार जी ने मर्यादा महोत्सव संस्थापना के उपलक्ष्य में घोषों की उद्घोषणा करवाई। मर्यादा गीत‘भीखण जी स्वामी भारी मर्यादा बाँधी संघ में’ गीत का सुमधुर संगान किया। आज का दिन मुख्यतया सेवा-चाकरी फरमाने का होता है। मुख्य नियोजिका जी ने सेवा के महत्त्व को उजागर करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति की दो धाराएँ रही हैं, वैदिक और श्रमण। श्रमण परंपरा के साथ में जैन-बौद्ध और सांख्य दर्शन जुड़ा हुआ है। जैन परंपरा और बौद्ध परंपरा में सेवा को महत्त्व दिया गया है। पंच-सूत्र में गुरुदेव तुलसी ने लिखा है कि तीर्थंकर भगवान कहते हैं कि जो रुग्ण-वृद्धों की सेवा करता है, वो वास्तव में मेरी सेवा करता है। भगवान के इस वाक्य से ही हमें सेवा के महत्त्व का अनुमान लग जाता है। जो व्यक्ति सेवा करता है, वह अपना मूल्य स्वत: बढ़ा लेता है। जो व्यक्ति सेवा करना जानता है, वो वास्तव में महान होता है। सेवा करने वाले के भीतर एक संवेदनशील हृदय हो, ज्ञान कम-ज्यादा हो बात अलग है। सेवा एक ग्रंथ है। जिसका दिल करुणा से भरा होता है, वह दूसरों की सेवा कर सकता है।
साध्वी जिनप्रभाजी ने साध्वियों की ओर से एवं मुनि कुमार श्रमण जी ने साधुओं की ओर से पूज्यप्रवर से सेवा-चाकरी फरमाने की अर्ज की।
पूज्यप्रवर ने सेवा दिवस पर मंगल पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि अहिंसा, संयम और तप धर्म होता है। हम लोग एक धर्मशासन के सदस्य हैं। जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मशासन के सदस्य हैं। आज हमारे धर्मसंघ के वार्षिक महोत्सव, मर्यादा महोत्सव के त्रिदिवसीय समारोह का शुभारंभ हुआ है।
मर्यादाओं का महोत्सव मनाया जाता है, यह एक महत्त्वपूर्ण है। हमारे धर्मसंघ में मर्यादाओं का विशेष महत्त्व है। ऐसा कोई प्राकार बना हुआ है, मर्यादाओं का इसके अंदर रहने वाला व्यक्ति एक संदर्भ में सुरक्षित रह सकता है। मर्यादाओं के साथ-साथ हमारे यहाँ सेवा की भी व्यवस्था है। जहाँ संगठन-समुदाय होता है, अनेक व्यक्ति साथ में रहते हैं, परस्पर संबद्ध भी होते हैं, तो वहाँ सेवा-सहयोग की आवश्यकता होती है। चारित्रात्माओं सुस्थिरता की दृष्टि से भी सेवा का बड़ा महत्त्व होता है। हमारे धर्मसंघ में सेवा के प्रति रूझान भी मैं देखता हूँ। साधु-साध्वियाँ अनेक रूपों में सेवा करते हैं। मैं आत्मतोष अनुभव कर सकूँ, ऐसी स्थिति मुझे लगती है। यह सेवा की भावना हमारे धर्मसंघ के लिए मंगलकारी है। कल्याणकारी है। शरीर है, तो कभी व्याधि भी अपना आसरा शरीर में ले सकती है। विभिन्न संदर्भों में सेवा की जा सकती है। उनका अपना-अपना महत्त्व है। ज्ञान देना-पढ़ाना भी बहुत अच्छी सेवा है। धर्म प्रचार के रूप में श्रावक समाज को संभालना भी एक सेवा है। श्रावक-श्राविकाएँ भी अपने ढंग से सेवा करते हैं। एक सेवा होती है, परिचर्या की, चिकित्सा के रूप में सेवा। शारीरिक अक्षमता वालों की अग्लान भाव से सेवा करना यह हमारा एक धर्म हो जाता है। सेवा का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। अपेक्षा हो उन्हें सेवा मिलनी चाहिए। तपस्वी हो या नव दीक्षित हो उन्हें भी सेवा चाहिए। हमारे यहाँ सेवा के केंद्र भी बने हुए हैं। आज तो सेवा केंद्र में बैठकर सेवा की बात कर रहे हैं। यह एक विरल मौका हैसमाधि केंद्र में सेवा की बात करना। अक्षम जो है, उनको सेवा देने वाला मिल जाए तो कितनी शांति मिलती है। सेवा केंद्रों में हर साल सेवादायी की नियुक्ति की जाती है।
सेवा केंद्रों में सबसे प्राचीन सेवा केंद्र तो लाडनूं साध्वियों का ठिकाना है। सेवा केंद्र एक तरह के तीर्थ हैं। साध्वी प्रबलयशाजी इस लाडनूं साध्वी केंद्र में सेवा देने की वंदना करे। समाधि केंद्र बीदासर में साध्वी सुदर्शनाश्री जी सेवा देने की वंदना करें। श्रीडूंगरगढ़ सेवा केंद्र में साध्वी चरितार्थप्रभा जी सेवा देने की वंदना करें। ये तो वाइस चांसलर रही हुई हैं। विदेश यात्रा भी की हुई है। समणी नियोजिका भी पहले बनाया था। गंगाशहर सेवा केंद्र में साध्वी कीर्तिलताजी सेवा देने की वंदना करें।
सेवाग्राही को शारीरिक सेवा के साथ मानसिक सेवा-चित्त समाधि मिले, ऐसा हमारा व्यवहार हो। सम्मानपूर्वक उचित सेवा उन्हें मिले। हिसार सेवा उपकेंद्र में साध्वी लब्धिप्रभाजी सेवा देने की वंदना करें। सेवादायी सिंघाड़ों को एवं सेवाग्राहियों के लिए भी पूज्यप्रवर ने प्रेरणा फरमायी। सेवा के साथ स्वाध्याय जप चलता रहे। ध्यान भी करें। जहाँ तक हो सेवाग्राही भी स्वयं की निर्जरा जितनी हो सके, करते रहें। सेवा देने वाले तो तैयार रहते ही हैं।
कम से कम लो, अधिक से अधिक दो, सेवा धर्म, विचार। रखो सभी के साथ में, प्रतिपल शिष्टाचार॥
साधुओं के सेवा केंद्र में छापर सेवा केंद्र पुराना है। वहाँ मुनि पृथ्वीराज जी सेवा दे रहे हैं, आगामी सत्र में भी दायित्व मुनि पृथ्वीराज जी संभालें। दूसरा सेवा केंद्र जैविभा में है, वहाँ सेवा देने के लिए मुनि विजय कुमार जी स्वामी की नियुक्ति की जाती है। प्रकृति से प्रतिकूल को भी अपने पास रखना सेवा है। हमारी सेवा की भावना पुष्ट रहे। हम दूसरों के लिए समाधि के निमित्त बन सकें। समाधि ज्यादा तो अपने हाथ में ही है। स्वयं का सकारात्मक चिंतन है, समता है, तो दूसरा कुछ भी कहे। जहाँ अपेक्षा हो वहाँ सेवा करने भेजो वो और ज्यादा ऊँची बात होती है। आज बसंत पंचमी का दिन, मर्यादा महोत्सव का प्रथम दिन है। उसमें सेवा केंद्रों की व्यवस्था हुई है। गुरुदेव तुलसी को देखा है, कैसे वो सेवा फरमाते थे। साध्वीप्रमुखाश्रीजी भी साध्वी समुदाय की व्यवस्था के रूप में कितनी सेवा कर रही है। मुझे संतोष है कि आप इतना श्रम करा रही हैं। आप लंबे काल तक सक्रियता से सेवा देती रहे। ऐसी मंगलकामना है।
आज हमारे शासन गौरव साध्वी राजीमती जी भी पधार गई हैं। बहुश्रुत परिषद के सात सदस्यों में से छ: यहाँ पर हैं। ऐसा भी विरल मौका है। हम सभी में सेवा की भावना पुष्ट हो। स्वास्थ्य भी अच्छा रहे। शासन की सेवा करने का प्रयास करते रहें।
साध्वियाँ धर्मोपकरणों का निर्माण करती रहती है, यह भी एक सेवा है। साध्वी राजीमती जी ने धर्मोपकरण श्रीचरणों में उपस्थित किए। साध्वी राजीमती जी वरिष्ठ साध्वीजी हैं। शासनश्री साध्वी कनकश्रीजी को भी शासन गौरव का अलंकरण दिया जा रहा है। शासन गौरव तीन साध्वियाँ हो गई हैंशासन गौरव साध्वी राजीमतीजी, साध्वी कनकश्रीजी एवं साध्वी कल्पलता जी। बीदासर के मुनि नमि कुमार जी ने 32 की तपस्या के प्रत्याख्यान पूज्यप्रवर से ग्रहण किए। जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित जयतिथि पत्रक का विमोचन पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में अर्पित किया गया। मित्र परिषद कलकत्ता द्वारा प्रकाशित तिथि दर्पण एवं तिथि पत्रक पूज्यप्रवर को समर्पित किया। महासभा के अध्यक्ष ने शिशु संस्कार भाग-2 श्रीचरणों में अर्पित किया। जैन भारती विशेषांक भी समर्पित किया गया। पूज्यप्रवर ने जयतिथि पत्रक व तिथि दर्पण के विमोचन पर आशीर्वचन फरमाया। जैन भारती व शिशु संस्कार बोध के लिए भी आशीर्वचन फरमाया कि इनका अच्छा उपयोग होता रहे। उपासक श्रेणी द्वारा सुमधुर गीत‘गुरुदेव हमें अच्छे संस्कार चाहिए’ का संगान किया गया। शासन गौरव साध्वी राजीमती जी ने पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में अपने भावों के उद्गार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।