तुलसी की अनुपम कृति हो तुम
साध्वी सुधाप्रभा
शासन माता साध्वीप्रमुखा, मम जीवन आधार है।
पाकर नेहिल सन्निधि तेरी, गण-गुलशन गुलजार है॥
तुलसी की अनुपम कृति हो तुम, तेरा क्या गुणगान करें?
शब्दकोश में शब्द अल्प हैं, फिर कैसे बहुमान करें?
मोतियों की गुणमाला का, गण में अति उपकार है॥
जीवन ज्योतिर्मय विभामय, भरता नव उल्लास है।
महाश्रमणीजी! तब चरणों में, रहता नव मधुमास है।
फूलों-सी सौरभ जीवन में, मधुकर-सी गुंजार है॥
खिल रहे हैं पुष्प अनगिन, सिंचन तुमसे पाकर के।
जल रहे हैं दीप मनोहर, दीपित तुमसे होकर के।
तेरे इंगित पर बढ़ने हित, मन से हम तैयार है॥
कदम-कदम पर कमल खिले, हम करते दिल से कामना।
आठों-याम रहे दीवाली, यही हमारी भावना।
भैक्षव-गण की महानिधि तुम, सचमुच में मंदार हो॥
पंख होते तो उड़कर आते, तव चरणों में आज हम।
तुम्हें बधाते, मंगल गाते, मोद मनाते मिलकर हम।
लो स्वीकारो, भेंट हमारी, श्रद्धा का उपहार है।
लय : कलियुग बैठा मार---