संताप हरो तुम मेरा
संताप हरो तुम मेरा
वत्सलता की अमर छाँव में, पाया नया सवेरा।
चंदेरी की सिद्ध साधिके! अब कहाँ किया बसेरा।।
तुलसी गुरु का चयन बना, भैक्षव गण वरदानी,
चंद्रमणि-आभा मनहारी, गूंजी कीर्ति कहानी,
सत्यं शिवं सुंदरं से, क्षण-क्षण नवरंग उकेरा।।
साँसों की सरगम पर बजती, गुरु-भक्ति इकतारी,
अंतिम साँस धरी गुरु-चरणां, प्रभु सन्निधि सुखकारी,
गुरु हो तो ऐसे हो विजयी शिरोमणि वचन उचेरा।।
असाधारण व्यक्तित्व तुम्हारा, उपमा क्या सजाएँ,
अमल स्याही से लिखी है जीवन पोथी की ऋचाएँ,
ज्ञान-ज्योति की प्रभुता से मिट गया सघन अंधेरा।।
नारी जाति को हिमालय सी दी है ऊँचाई,
ममता की गंगोत्री में, हर कली मुस्काई,
कैसे भूलें उपकारों को, संताप हरो तुम मेरा।।
लय: जनम-जनम का साथ