ज्योतिर्मय जीवन था तेरा
ज्योतिर्मय जीवन था तेरा
ज्योतिर्मय जीवन था तेरा, श्रमणी गण की थी तुम शान।
असाधारण साध्वी प्रमुखा, बनी संघ की तुम पहचान।।
कलकत्ता में जन्म तुम्हारा, चंदेरी में पाई शिक्षा।
भिक्षु भूमि की पुण्य धरा पर, तुलसी कर से पाई दीक्षा।
विनय समर्पण अद्भुत तेरा, गुरु दिल में जो बना स्थान।।
तीन-तीन आचार्यों की सेवा तन-मन से तुमने साधी।
करुणा से आप्लावित जीवन, देती सबको पूर्ण समाधि।
अनुपमेय व्यक्तित्व तुम्हारा, कितने शब्दों से गाए यशगान।।
पंचाचार साधना से जीवन को तुमने खूब संवारा।
योग मिला था आर्यप्रवर का गजब किया संथारा।
सही वेदना शांत भाव से लक्ष्य बनाया था महान।।