एक दृढ़-तपस्विनी और गहन साधिका थी साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी
नरपत दुगड़ (संसारपक्षीय भांजा)
संसार में आने वाला हर प्राणी जीवन जीता है पर कुछ जीवन अनुकरणीय और पूजनीय होते हैं। ऐसा ही एक ओजस्वी व्यक्तित्व था शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी का। संघ और संघपति के प्रति अटूट आस्था का एक अद्भुत उदाहरण थी साध्वीप्रमुखाश्री। एक दृढ़-तपस्विनी और गहन साधिका होने के साथ-साथ ही वे परम विदूषी, संवेदनशील कवयित्री और एक कुशल व्यवस्थापक थी। इतनी सारी विशेषताओं का समवाय अगर किसी व्यक्तित्व में होता है तब निश्चित रूप से वह व्यक्तित्व आलौकिक है। तेरापंथ धर्मसंघ के तीन महान आचार्यों के पावन निर्देशन में गुरुओं के इंगित की प्रतिपल आराधना करते हुए गुरु निष्ठा और अटूट आस्था से उन्होंने आचार्यों की कृपा प्राप्त की उनके निर्देशन में अपनी कुशल नेतृत्व शैली और दायित्वशीलता से धर्मसंघ को अपूर्व ऊँचाइयाँ प्रदान की। पूरे चतुर्विध संघ ने मातृहृदया साध्वीप्रमुखाजी का मातृतुल्य आध्यात्मिक वात्सल्य, करुणा और कृपादृष्टि प्राप्त कर धन्यता की अनुभूति की। उनकी वैचारिक उदात्तता, ज्ञान की अगाधता, आत्मा की पवित्रता, सृजनधर्मिता, विनम्रता ने हमेशा उन्हें एक विशिष्ट स्थान में स्थापित किया। ऐसी दीपशिखा के संसारपक्षीय परिजन होना हमारे परम सौभाग्य का प्रतीक है। यह तो मेरा सौभाग्य है कि वह मेरी संसारपक्षीय मासी थी, जिनकी छत्रछाया में मेरा लालन-पालन हुआ। यदि मैं उन्हें यशोदा माँ कहूँ तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। वह सचमुच एक असाधारण पुष्प आत्मा थी।
उनके चरणों में अगाध ममता का सागर था। वह हमेशा मेरे स्मृति पटल पर विराजमान रहेगी। आपकी परम इच्छा थी कि गुरुदेवश्री महाश्रमण जी को ‘युगप्रधान’ की उपाधि से विभूषित होते हुए देखें। नियति का लेखा कोई बदल नहीं सकता। इस समारोह की साक्षी बनने से पूर्व ही उनका महाप्रयाण हो गया और पूरा धर्मसंघ उस समारोह में प्रमुखाश्रीजी की दिव्य उपस्थिति से वंचित रह जाएगा, पर उनके द्वारा प्रसारित अध्यात्म रश्मियों से पूरा परिवार व धर्मसंघ आलोकित होता रहेगा। उनकी असाधारण सेवाओं को इतिहास हमेशा याद रखेगा और उनका नाम सदा स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा। आपके प्रेरणादायी और अमृतमय वचन हमेशा हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।
उनकी मोक्षगामी आत्मा आध्यात्मिक शिखर पर पहुँचे, यह मंगलकामना है।