मेरी यशोदा माँ थी साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी
शशि बोहरा (संसारपक्षीय भानजी, पटना)
मृत्यु सत्य है और शरीर नश्वर है, यह जानते हुए भी अपनों के जाने का दुःख होता है। फिर आप तो मेरी यशोदा माँ थी, मासी तो होती ही है माँ जैसी। जन्म माँ ने दिया पर मुझे आपकी गोद मिली, मैं सौभाग्यशाली रही कि मैंने अपना बचपन आपकी गोद में बिताया। इन सालों में मुझे आपके सान्निध्य में रहने का काफी समय मिला, आपका मेरे पर जो वात्सल्य था उसको मैं कभी भूल नहीं पाऊँगी। आपको कोई भी खाली बैठा हुआ अच्छा नहीं लगता था, मैं जब भी आपके उपासना में आती आप मुझे कुछ-न-कुछ सीखने की प्रेरणा देते और फरमातेµजाने से पहले सुनाकर जाना। इसके कारण मैंने काफी कुछ कंठस्थ किया। आपकी उपासना में सामायिक तो 8, 9 हो जाती थी। आज आप प्रत्यक्ष रूप में हमारे साथ नहीं हैं पर आपकी मूरत हमेशा मेरे हृदय पटल पर अंकित रहेगी। इन आठ-दस सालों में हर चौमासे में मैं दो-ढाई महीने आपकी उपासना में रहती थी, वो समय मेरे जीवन का अमूल्य समय होता था। मैंने स्वर्ग तो नहीं देखा पर सुना है कि वहाँ बहुत सुख होता है पर मुझे तो आपके चरणों में जो आनंद एवं सुख की अनुभूति होती वो स्वर्ग के सुख से कम नहीं लगती थी। आपके दर्शन मेरी आँखों के लिए अमृत तुल्य अंजन का काम करता था। आपके व्यक्तित्व का या गुणों का वर्णन कर सकने का सामर्थ्य मुझमें नहीं है।
मैं भगवान से प्रार्थना करती हूँ कि आपकी आत्मा को शांति एवं मोक्ष प्रदान करें।