जय हो शासनमाता
मुनि उदित कुमार
जय हो शासनमाता।
साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा की पावन जीवन गाथा।।
तुलसी गुरुवर की अनुपम कृति प्रतिकृति संघ प्रगति की।
उन्नति पथ पर बढ़ी निरंतर उत्प्रेरक जागृति की।
अप्रमत्त थी जीवन शैली जन-जन शीष झुकाता।।
काव्य सृजन की कला अनूठी मन को छूने वाली।
मानव मन को भावित करती प्रवचन शैली निराली।
अनगिन है अवदान तुम्हारे, कोई माप न पाता।।
तीन-तीन गुरुओं की सेवा एकनिष्ठ हो साधी।
सतियों की संभाल खूब की दृष्टि सदा आराधी।
कुशल प्रबंधन आत्मिक स्पर्शन अंतस को छू जाता।।
सतीशेखरा का पथदर्शन याद सदा आयेगा।
वत्सलता की मूरत को जग नहीं भूल पायेगा।
मंगल भावों की माला चरणों में उदित चढ़ाता।।
लय: संयममय जीवन हो