दुःखों से छुटकारा पाने का उपाय है धर्म की ऊँची साधना: आचार्यश्री महाश्रमण
अड़सीसर, 19 मई, 2022
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः 12 किलोमीटर का विहार कर अड़सीसर स्थित राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे। शासन शेखर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि एक युवक एक संन्यासी के पास आया और बोला-बाबाजी आत्मा के बारे में समझाओ। बाबाजी ने उसको काफी देर तक अनेक शास्त्रीय उल्लेखों और युक्तियों के आधार पर आत्मवाद के सिद्धांत को व्याख्यायित करके समझाने का प्रयास किया।
साधु अपनी बात संपन्न करके मौन हुआ तो युवक बोला कि बाबा मैं आपका आभारी हूँ जो आप इतनी देर तक धारा प्रवाह बोलते हुए आत्मवाद पर व्याख्यान दे दिया। दूसरी बात है कि एक घंटे तक आपको सुन लेने के बाद भी मैं आत्मा को मानने के लिए तैयार नहीं हूँ। मेरा मानस आत्मवाद के सिद्धांत को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हुआ। बाबा बोले-मैंने शास्त्रों-युक्तियों के आधार पर बात बता दी अब मैं तुमको कैसे बताऊँ। युवक बोला-शास्त्रों की बात छोड़ो, मुझे आत्मा को हाथ में लेकर बता दो, प्रत्यक्ष आत्मा दिखाई देगी तो मैं मान लूँगा। प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं है। जन्मांध के प्रसंग से समझाया कि जन्मांध क्या जाने सूरज को। आँखों से दिखने लगेगा तो बात समझ में आ जाएगी। प्रत्यक्ष को ज्यादा समझाने की जरूरत नहीं है।
संत बोले कि आत्मा ऐसी चीज नहीं है, जिसको हाथ में लेकर दिखाया जा सके। आत्मा तो अमूर्त है। धर्मास्तिकाय- अधर्मस्तिकाय भी अमूर्त है। तो लड़का बोला-फिर मैं आपकी बात को नहीं मानता। जो दिखाई नहीं देता उसको मैं नहीं मान सकता। साधु बोले-तो ये बात पक्की है। संन्यासी ने सोचा इसको तो तरीके से ही समझाना पड़ेगा। बाबाजी बोले-रात में नींद लेते हो तो नींद में सपने आते होंगे। हाँ बाबाजी रात को भी सुंदर सपना आया था, नींद में मैंने देखा कि मैं लोकसभा का चुनाव लड़ा, मैं जीत गया और मुझे प्रधानमंत्री बना दिया। 15 अगस्त का दिन आया मैंने लालकिले पर भाषण भी दिया था। पर बादल गरजे और मेरी नींद टूट गई। बाबाजी बोले-तुमने सपना देखा होगा पर मैं कैसे मान लूँ? तुम उस सपने को हाथ में लेकर दिखाओ। लड़का बोला-ये तो संभव नहीं है। बाबाजी बोले-तुम सपना हाथ में लेकर नहीं दिखा सकते, तो मैं भी आत्मा को हाथ में लेकर कैसे दिखा सकता हूँ। लड़का बोला-ये बात ठीक है कि हर चीज को हाथ में लेकर नहीं दिखाया जा सकता, अब आपकी आत्मा की बात है मैं पूर्णतया अस्वीकार नहीं कर सकता।
धर्म शास्त्र जगत का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है-आत्मवाद। शरीर अलग है, आत्मा अलग है। मृत्यु के बाद जीव की पार्थिव देह यहाँ रह जाती है, आत्मा निकल जाती है। आत्मा का संसारी अवस्था में पुनर्जन्म भी होता है। जन्म होता है, मृत्यु होती है। शरीर का दाह संस्कार होता है, पर आत्मा को कोई जला नहीं सकता। आत्मा के टुकड़े-टुकड़े करके खत्म नहीं कर सकता। आत्मा अखंड रहने वाला तत्त्व है। अमर तत्त्व है। शरीर सबका नश्वर है। शरीर और आत्मा साथ-साथ रहते हुए भी अलग-अलग हैं। गुरुदेव महाप्रज्ञ जी ने गीत में कहा है-आत्मा भिन्न, शरीर भिन्न है।
आत्मा हमारी जो संसारी अवस्था में है, वो अशुद्ध स्वरूप में है। सिद्धों की आत्मा तो पुर्णतया शुद्ध है। हमारी आत्मा संवर-निर्जरा की प्रक्रिया से शुद्ध हो जाती है, तो अपने स्वरूप में आ जाती है।
अशुद्ध आत्मा है, वो जन्म-मरण के चक्र-परंपरा में भ्रमण करती रहती है। धर्म के एक सिद्धांत हैं-आत्मा है। आत्मा स्थायी है। पुनर्जन्म भी आत्मा का संसारी अवस्था में होता है। पुनर्जन्म है, तो साथ में पुण्य-पाप की बात भी है। पुण्य से भौतिक सुख मिल जाता है, पाप से दुःख मिलता है। पुण्य-पाप को ग्रहण करने वाला आत्मा का परिणाम आश्रव है।
आश्रव को रोक देना संवर है। तपस्या आदि के द्वारा जो कर्म झड़ते हैं, वो निर्जरा तत्त्व है। भीतर में बंधे कर्म बंध हैं। सारे कर्म अलग हो जाएँ, टूट जाएँ, आत्मा पूर्णतया शुद्ध हो जाए तो मोक्ष हो जाता है। आत्मा मोक्ष में विराजित होती है। मनुष्य-जन्म का अंतिम लक्ष्य यह होना चाहिए कि मैं मोक्ष प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ूँ। जन्म-मरण की परंपरा से मुझे सदा के लिए छुटकारा मिल जाए। जन्म दुःख है, बुढ़ापा दुःख है, रोग दुःख है, मृत्यु भी दुःख है। कितना दुःख है संसार में। दुःखों से छुटकारा पाने का उपाय है-धर्म की ऊँची साधना। गृहस्थ भी जितना हो सके, त्याग, संयम, तपस्या करे। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति को अपनाएँ। धर्म एक ऐसा तत्त्व है, जो कल्याणकारी है। धर्म का मौलिक सिद्धांत है-आत्मवाद। आज अड़सीसर गाँव में आना हुआ है। गाँव के लोगों के जीवन में सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति रहे। अड़सीसर के सरपंच बादरराम पूनियां लूणकरणसर कन्या मंडल, महिला मंडल ने पूज्यप्रवर की अभिवंदना में अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।