खमतखामणा से चित्त में आह्लाद का भाव पैदा हो सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण
कालू, 22 मई, 2022
जिनशासक के प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि अर्हत वाङ्मय में कहा गया हैµआर्षवाणी का यह श्लोक है, जिसमें क्षमा के आदान-प्रदान की बात है। किसी के साथ मेरा बैर नहीं, सब प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है। बहुत उदाप्त वाला यह श्लोक है। यदा-कदा यह श्लोक उच्चारित हो जाए और हमारा मन निर्बैर्य भाव से भावित रहे तो आत्म-उत्थान की दृष्टि से बहुत अच्छा रह सकता है। सामान्यतया हमारे जीवन में अनेक व्यक्तियों से व्यवहार चलता है। व्यवहार करते-करते कभी कटुता का उद्भव भी हो जाता है। क्षमायाचना या खमतखामणा ऐसा प्रयास है कि चित्त में आह्लाद भाव पैदा हो सकता है।
आक्रोश में आकर भी ऐसा नहीं बोलना जो अशुभ कर्म बंध का कारण बन जाए। हमारे जीवन में उत्तम क्षमा का भाव विकसित हो। यह एक प्रसंग से समझाया कि महापुरुषों के जीवन में महानता होती है। शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी को भी अंत समय में कितनी मंगलभावना थी। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी भी खूब सेवा करती रहें। दंड सब जगह एक समान हो, यह जरूरी नहीं है। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव देखकर ही दंड दिया जा सकता है। कार्य की पृष्ठभूमि भी देखने की चीज होती है। हमारे व्यवहार में भी क्षमा रहे।
साध्वी बिदामाजी यहाँ हैं, जो सौ वर्ष से पार हैं। आज उनसे संपर्क हुआ, वे निर्मल चारित्र वाली साध्वी है। आलोयणा भी करवाई है। साध्वी उज्ज्वलरेखाजी आदि साध्वियों को सुदीर्घ आयुष्य वाली साध्वी की सेवा करने का अवसर मिल रहा है। हमारे धर्मसंघ में यह प्रथम प्रसंग आया है कि इतने आयुष्य वाली एक साध्वी हमारे धर्मसंघ में विद्यमान हैं। हमें भी उनसे मिलने का मौका मिल गया। वे खूब चित्त समाधि में रहें। साधना करती रहें।
हमारे साध्वी समाज में भी सर्वोच्च स्थान पर साध्वीप्रमुखाजी हैं। सर्वोच्च अधिकार, सम्मान साध्वी समाज का इन्हें प्राप्त है। खूब अच्छा काम चलता रहे। नंबर दो पर साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा है। मुख्य मुनि हमारे सचिव हैं, कितना हमारा कार्य करते रहते हैं। अगवानी साधु-साध्वियाँ भी हैं। दंड देने में हमारी जागरूकता-स्पष्टता रहे। गुरुदेव तुलसी का तो विशेष अनुभव था। आचार्य महाप्रज्ञजी के भी चरणों में रहने का मौका मिला। आचार्यों के चरणों में रहने का मौका एक बहुत बड़ा अवसर हो सकता है। उस अवसर पर का लाभ उठाया जाए तो अनेक विकास की स्थितियाँ निमित्त हो सकती है। गुरु की दृष्टि से न्यारा में रहना भी बढ़िया है।
साध्वी हुलासांजी की स्मृति सभा
साध्वी हुलासांजी देशनोक में प्रयाण हो गया था। पूज्यप्रवर ने उनके बारे में बताया। वे गंगाशहर से थीं। 2002 में गुरुदेव तुलसी के हाथों दीक्षा हुई थी। लगभग 77 वर्षों का संयम पर्याय था। पूज्यप्रवर ने कानपुर में उनको शासनश्री अलंकरण से अलंकृत किया था। वे वयोवृद्धा साध्वी थीं। साध्वियाँ चित्त समाधि में रहें। उनके प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना के प्रति मध्यस्थ भावना है। वे शीघ्र मोक्ष प्राप्त करें। चार लोगस्स का ध्यान करवाया। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने, मुख्य मुनिप्रवर ने भी अपनी भावांजली साध्वी हुलासांजी के प्रति अभिव्यक्त की। साध्वी कल्पलताजी ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। पारिवारिक जनों की ओर से संजू भूरा ने अपनी भावांजली दी।
पूज्यप्रवर ने साध्वी जिनप्रभाजी व साध्वी कल्पलता जी के बारे में फरमाया कि साध्वीप्रमुखाजी से वयोवृद्ध ये दो साध्वियाँ वर्तमान में गुरुकुल में हैं। साध्वी कल्पलता जी तो शासनमाताजी के साथ इस तरह रहती थीं जैसे रामायण में अंजना सति के साथ उनकी सखी वसंत तिलका रहती थी। पूज्यप्रवर ने स्मृति सभा के समाप्ति की घोषणा की। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में साध्वी प्रसन्नयशाजी, साध्वी वैभवप्रभाजी, साध्वी उज्ज्वलरेखाजी, समणी कांतिप्रज्ञाजी, समणी कुसुमप्रज्ञाजी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने सुश्री मोनिका पितलिया को मुमुक्षु के रूप में साधना करने की अनुमति प्रदान करवाई। परम पावन के स्वागत में भगराज बरमेचा, दिव्यांश सांड, विनोद बेनीवाल, हनुमानमल नाहटा, विवान सांड, कल्पना सांड, मुल्तानी देवी नाहटा, संजू नाहटा, सुनीता नाहटा, तेरापंथ महिला मंडल ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।