अर्हम
गणफूलवारी है मनहारी, महाश्रमण गणमाली।
संघ हमारा लगता प्यारा।
आज दिवाली है खुशहाली, गण प्रांगण में उत्सव।
अभिनंदन करते हैं अभिवंदन करते।।
नई भोर की किरणें, प्राणी में छाई लाली।
गणवन का पल्ला, पल्लत झूम रही हर डाली।
हो सुन लो! वर्धापन की मंगल घड़ियाँ हो, बज रही है शहनाई।।1।।
गुरु तुलसी महाप्रज्ञ ने, व्यक्तित्व तुम्हारा संवारा।
महाश्रमण गुरु ने, संघ दीक्षित पर तुम्हें उभारा।
हो सुन लो! प्रमुखा पद की उठा चदरिया हो, श्रमणीगण शासन बढ़ाई।।2।।
संघ निष्ठा विजय समर्पण, अनुपम है चिंतन शैली।
गुरुवर ने तुम्हें बनाया, शासन की चित्राबेला।
हो सुन लो! गुरुइंगित आराधना करके, हो वरो प्रवर ऊँचाई।।3।।
कुशल शासन पाकर लिख देंगे नई ऋचाएँ।
सपनों में रंग भरेंगी, परछाई हम बन जाएँ।
हो सुन लो! प्रमुखाश्रीजी को साध्वी त्रिशला देती सौ-सौ बधाई।।4।।
लय: ऐसा देश है मेरा---