आध्यात्मिक उद्गार
आर्ष वाणी में कहा गया है-‘समया धम्म मुदाहरे मणी’ भगवान् महावीर ने समता में धर्म बताया है। मुझे लगभग 8 वर्ष 3 महीने साध्वी हुलांसाजी के सान्निध्य में रहने का सुअवसर प्राप्त हुआ। जब मैं उनके पास आई तो वे वृद्धावस्था में थीं। मैंने उनके जीवन को देखा, मुझे ऐसा लगा भगवान महावीर की इस वाणी को उन्होंने अपने जीवन का ध्येय बना लिया था। जीवन के अंतिम क्षणों में भी उनकी समता अखंड थी। वे मानो समता की प्रतिमूर्ति थी। उनका आभामंडल निर्मल था। जो भी व्यक्ति एक बार उनके दर्शन करता वह उनके प्रति श्रद्धानत हो जाता। मैं नवदीक्षित थी, साधुचर्या से बिलकुल अनजान। साध्वीश्री जी ने किस प्रकार मुझे संयम जीवन का प्रशिक्षण दिया, पग-पग पर मुझे जागरूक किया, मुझ पर असीम वात्सल्य बरसाया, मैं उन पलों को कभी विस्मृत नहीं कर सकती। वे द्रव्य से दिवंगत हो गई हैं। लेकिन भाव से मेरी स्मृति पटल पर सदैव अमर रहेंगी। मैं उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना करती हूँ कि वे शीघ्रातिशीघ्र मोक्षश्री का वरण करें।