संघ को नमन करें
गौरवशाली संघ का इतिहास निराला है।
पूर्वाचार्यों के सिंचन से बना आज मतवाला है।
गण नीवों में भरी प्रबलतम तपस्या की पुण्याई।
भैक्षव शासन निखर उठा बाबा ने दी ऊँचाई।।
कि संघ को नमन करें---
भिक्षु से श्री महाश्रमण ने परिश्रम घोर किया।
संघ प्रभावना के खातिर यात्रा का दौर किया।
श्री तुलसी ने दक्षिणांचल में अणुव्रत को गुंजाया।
महाश्रमण ने पूर्वांचल को व्यसन मुक्त बनाया।
कि संघ को नमन करें---
महाप्रज्ञ महायोगीश्वर ने जग को खूब जगाया।
है आनंद आत्मा के भीतर मूच्छाभाव भगाया।
कितनी-कितनी आत्माओं ने अपना चैतन्य जगाया।
भला किया इस जग का, गण को महाश्रमण बकसाया।।
कि संघ को नमन करें---
तेजस्वी शासक को पाकर पोर-पोर खिला।
मानो इस कलयुग में गण को चिंतामणी रत्न मिला है।
मन इच्छित कर दावा प्रभु की क्या-क्या महिमा गाएँ।
शासनमाता के स्थान पर विश्रुतविभा मन भाए।।
कि संघ को नमन करें---
वर्षों तक शासनमाता ने गण में काम किया है।
गुरु दृष्टि आराधन करते निश्चित जीवन जिया।
वही दृष्टि आराधन करके देना गण को ऊँचाई।
अर्घ दुनिया का लो समर्पण श्रद्धा की गहराई।।
कि संघ को नमन करें---
नहीं इन कलियों को सिंचत देना सवाया।
बढ़े सदा उत्साह निरंतर सिर को थपथपाना।
देना है संस्कार सदा, शासन की ऋद्धि बढ़ाएँ।
तेरे इंगित पर चलकर जीवन का दीप जलाएँ।।