अर्हम्
शासनश्री साध्वी सोमलता
शासणा आपां रो ज्यूं आसमान में चमकै ध्रुवतारो।
शासण आपां रो धरती पर है सरदार सारां रो, शासणा---
शासण आयां रो आधार आज है लाखां लाखां रो, शासणा---।।टेक।।
संस्थापक स्वामी भीखण जी इण री नींव लगाई हो।
डिग्या न तिल भर झेल्यो स्वागत पग-पग कष्टां रो।।
उत्तरवर्ती गणपति गण ने सींच सींच कर बड़ो कर्यो।
वर्धमान है महाश्रमण जयकारी बरतारो।।
सरल सुकोमल समता सेवी सहनशील श्रुत-सिंधु रो।
युगप्रधान षष्टिपूर्ति रो मोछब मनहारो।।
साध्वीप्रमुखाजी ने शासणानाथ कह्यो शासणमाता।
आ अलवेली रचना सीन दिखायो सुरगां रो।।
मुख्य नियोजिकाजी पद सरज्यो महामना महाप्रज्ञ प्रवर।
महाश्रमणजी वर बखसायो साध्वी प्रमुखा रो।।
पढ्या लिख्या स्याणा सुलझूयोड़ा अप्रमत्त जीवनशैली।
गुरुवर इंगित स्यूं उन्नयन कराओ सा म्हारो।।
नंदनवन सो गणवन वीतराग सम गण सम्राट मिल्या।
संयम री छेनी स्यूं भाखर तोडां करमां रो।
‘सोमलता’ नित बरस रह्यो आशीर्वर गुरवां रो।।