साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी के प्रति
साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी के प्रति
नित उठ ध्यावां---
नित उठ ध्यावां, बिरुदावां, थानैं सतियां रा सरदार।
मंगल गांवां, शीष झुकावां, थे हो जिन शासन शृंगार।। नित0।।
कीर्तिमानी साध्वीप्रमुखा, रच्यो नयो इतिहास।
दिग् दिगन्त में महिमा फैली, भैक्षव गण में खास।। नित0 ।।
घणै जतन स्युं साध्वी संघ री, आप करी रिछपाल।
गुरु-दृष्टि सिर माथै राखी, बण साध्वी संघ री ढाल।। नित0।।
तुलसी युग री तरुण तरुणिमां, थां पर सबनै नाज।
बहुआयामी जीवन निरख्यां, विस्मित सकल समाज।। नित0।।
तीन-तीन पीढ्यां आचार्या री, राख्यो दृढ़ विश्वास।
विनय समर्पण भाव आपरो, घोली घणीं मिठास।। नित0।।
शासन माता आप आज हो, शक्ति का महाकोश।
मन मंदिर में सदा विराजो, भरद्यो अंतर जोश।। नित0।।
रोगा क्रांत हुया महासतिवर आ कर्मा री चाल।
आत्मा भिन्न शरीर भिन्न है, मिटसी जग जंजाल।। नित0।।
आर्यप्रवर महाश्रमण बण्या है, तारण तरण जिहाज।
धर्मसंघ नतमस्तक चावै, सफल करे निज काज।। नित0।।
लय: ऊँची राखिज्यो भावांरी थे---
- पदमचंद पटावरी