अणुव्रतों के द्वारा पापों से बचा जा सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अणुव्रतों के द्वारा पापों से बचा जा सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण

बम्बलू, 29 मई, 2022
जन-जन को अपने मंगल प्रवचन से चित्त समाधि प्रदान करने वाले महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी 14 किलोमीटर का विहार कर बम्बलू ग्राम में पधारे। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के ज्ञाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि समय का अच्छा उपयोग करना चाहिए। कोई भी घटना घटती है, उसके लिए समय और स्थान चाहिए। समय एक ऐसा तत्त्व है, जो सामान्यतया फ्री मिलता है। बरसात का पानी कुंड में भरा जा सकता है, या नाली में व्यर्थ भी बह सकता है। वैसे ही समय भी बरस रहा है, उसका हम उपयोग क्या कर रहे हैं। कोई सामायिक में, कोई बात में या नींद में समय व्यतीत कर सकता है।
तीन शब्द हो जाते हैं-सदुपयोग, दुरुपयोग, अनुपयोग। अच्छे कार्य में समय का सदुपयोग हो जाता है। आदमी गलत काम करता है, तो समय का दुरुपयोग हो सकता है। ऐसे आलस्य में बैठा है, तो समय का अनुपयोग हो गया। हमें समय के दुरुपयोग से तो बचना ही चाहिए, अनुपयोग भी ठीक नहीं। हमें समय का सदुपयोग करना चाहिए। हमें मानव जीवन का समय मिला है, इसका हम लाभ उठाएँ। आगे की उम्र में आगे का ध्यान देना चाहिए। साधना करनी चाहिए। यह एक प्रसंग से समझाया कि जवानी का मोती वापस नहीं आने वाला है। साधु हो या गृहस्थ वृद्धावस्था में सबको आगे की सोचनी चाहिए। गुरुदेव महाप्रज्ञ जी अंतिम वर्षों की यात्रा में फरमाते थे कि यात्रा तो महाश्रमण की हो रही है, मैं तो सहयोगी बन रहा हूँ। यह गुरु की कृपा थी। वो अपनी साधना में ज्यादा ध्यान देते थे। उम्र आने पर सांसारिक काम से निवृत्ति व साधना में प्रवृत्ति करें। हमें समय का मूल्यांकन करना चाहिए कि कब कहाँ पर मोड़ लें। जीवन में धारा के साथ चलें।
जिंदगी में सदाचार अच्छा रहे। शांति में रहें। मानव जीवन का बड़ा अच्छा अवसर हमें प्राप्त है, हमें इसका अच्छा लाभ उठाना चाहिए। गृहस्थों की दृष्टि से श्रावक बनना अच्छी बात है। बारहव्रती या सुमंगल साधना साधक बनें। ज्यादा से ज्यादा धर्म के मार्ग पर गृहस्थ चलें। गृहस्थ सोचे-साधु तो महाव्रत पालने वाले, समता का जीवन जीने वाले हैं। मेरे से उतनी साधना वर्तमान में तो असंभव है। पर मैं अणुव्रत का तो पालन कर सकता हूँ। हमारा समय जितना पापों से बच सके हमें प्रयास रखना चाहिए। धर्म का जितना किया जा सके, आसेवन करना चाहिए। समय को सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए। बम्बलू गाँव में आना हुआ है। हम तीन प्रतिज्ञाएँ-सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति को बताने का प्रयास करते हैं। गाँव के लोगों ने भी समझकर प्रतिज्ञाएँ स्वीकार कीं। आज चतुर्दशी का दिन हाजरी का दिन है। पूज्यप्रवर ने हाजरी का वाचन किया। जागरूक रहने की प्रेरणा दी।

स्मृति सभा

पूज्यप्रवर के सान्निध्य में शासनश्री साध्वी मोहनांजी, साध्वीश्री कल्याणमित्रा जी एवं साध्वी विनयप्रभाजी की स्मृति सभा आयोजित की गई। पूज्यप्रवर ने तीनों साध्वियों का परिचय दिया। शासनश्री साध्वी मोहनांजी अंक विद्या, साहित्य लेख एवं सिलाई-रंगाई में निपुण थी। साध्वी कल्याणमित्राजी रोज 700 गाथाओं का स्वाध्याय करती थीं। सिलाई-रंगाई में निपुण थी। इन्होंने साध्वी कलाश्री जी की अच्छी सेवा की थी। साध्वी विनयप्रभाजी को काफी समय से कैंसर की बीमारी थी। वे भी आगम साहित्य, सिलाई, व्याख्यान आदि में निपुण थी। आपको लगभग ढाई घंटे का संथारा आया था। साध्वी मोहनांजी वयोवृद्ध साध्वी थी। तीनों साध्वियाँ धर्मसंघ में दीक्षित हो, धर्मसंघ में ही कालधर्म को प्राप्त हो गईं। सभी के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना करते हुए चार लोगस्स का ध्यान करवाया। साध्वी मोहनांजी की सहवर्ती साध्वियाँ अच्छा कार्य करती रहें। इन तीनों साध्वियों के प्रति हमारी मध्यस्थ भावना।
मुख्य मुनिप्रवर एवं साध्वीप्रमुखाश्रीजी, साध्वी मोक्षप्रभाजी, मुनि ध्रुवकुमारजी, साध्वी जिनप्रभाजी ने भी अपनी श्रद्धासिक्त भावना तीनों साध्वियों के प्रति व्यक्त की। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि हमने तीन साध्वियों की स्मृति सभा आयोजित की। साध्वी मोहनांजी की सहवर्ती साध्वियाँ खूब चित्त समाधि में रहें। साध्वी रामकुमारीजी भी खूब चित्त समाधि में रहें। साध्वी कल्याणमित्राजी का साध्वी कलाश्री जी के साथ रहना विशेष बात थी। तीनों साध्वियों की आत्माएँ उन्नति की ओर प्रगति करें। आज ही के दिन मैंने मुख्य मुनि पद पर मुनि महावीर को स्थापित किया था। साध्वीवर्या का पद दो दिन पहले स्थापित किया था। दोनों ही खूब अच्छा विकास करें। खूब अच्छी सेवा करें, स्वस्थ्य रहें, चित्त समाधि में रहें। सिवजी से रतनलाल जैन ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में रामलाल रांका ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने कालचक्र के बारे में समझाया।