युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
शासनमाता साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा
मनोनयन दिन आज तुम्हारा, गीत वधाई के हम गाएं।
उजले-उजले भाव हृदय के बन्दनवार सजाकर लाएं।।
तुलसी-महाप्रज्ञ का तुम में बोल रहा विश्वास प्रबल है,
शुभ सौगात समर्पण की लो आस्था का अनुबंध अटल है।
पौरुष की ले नाव नापना अब असीम सागर का तल है,
करो कठिनतम कार्य आर्य! अक्षत अविकल अविचल भुजबल है।
प्रबल प्रेरणा भरती जाए नई पुरानी सब रचनाएं।।
उषाकाल-सी लिए ताजगी कदम-कदम तुम बढ़ते जाओ,
चरणों में नवस्फूर्ति लिए अब हिमगिरि पर तुम-चढ़ते जाओ।
झेल चुनौति साहस से इतिहास सदा तुम गढ़ते जाओ,
आत्मा की पोथी यह अभिनव जीवनभर तुम पढ़ते जाओ।
मंगल गाती आज तुम्हारे नभ की ये उन्मुक्त दिशाएं।।
खिलो फूल बनकर तुम ऐसे नहीं कभी जो फिर मुरझाए,
जलो दीप बनकर तुम ऐसे नहीं कभी जो बुझने पाए।
मुस्काओ मधुमास खास बन नहीं कभी आकर जो जाए,
बरसो बनकर मेघ धरा पर पुनः कभी जो ना तरसाए।
आस-पास नित बहे तुम्हारे आर्य! सफलता की सरिताएं।।