युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
युगद्रष्टा युगस्रष्टा प्रभुवर संघ चतुष्टय आज बधाएं।
युगप्रधान अभिषेक पर्व पर अर्पित है शुभ भाव ऋचाएं।।
शांत सौम्य मनहर मुखमुद्रा शरणागत की पीड़ा हरती
करुणा से आप्लावित वाणी जन-जन को आकर्षित करती
परहित पर-उपकार निरत इस तेजपुंज को शीष झुकाएं।।
जैन जगत के शारद शशधर आगम अमृतपान कराते
ज्ञानसिंधु में हो अवगाहन पुण्य प्रेरणा दीप जलाते
नव- उन्मेषी प्रवचन शैली उलझी हर गुत्थि सुलझाए।।
अष्ट सम्पदा के स्वामी होे वचन संपदा अति बलवान
परिवर्धन परिवर्तन हित नव राह दिखाते हो मतिमान
शक्तिसुमेरु! दो आशीर्वर अपनी सोई शक्ति जगाएं।।
षष्टिपूर्ति का अवसर पावन शतकपूर्ति हो मंगलभाव
मोक्षमार्ग को सुगम बनाने गण - गणपति है सक्षम नाव
युग-युग तक पाए पथदर्शन खुले प्रगति की नई दिशाएं।।