युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

गण आंगन में आज दिवाली।
युगप्रधान उत्सव मनभावन,
हर मन में नूतन खुशहाली।।
युगप्रधान सम्मान सुपावन
शासन माता का अरमान
स्वर्ण जयंती के अवसर पर
पाया प्रभु से यह वरदान।
युगों-युगों तक रहे गूंजती
गण-गौरव की यश गाथाएं
आत्मजयी विजयी युगनायक
सभी दिशाएं आज बधाएं
कदम-कदम पर दीप जलाकर
शम सम श्रम से सदी उजाली।।

नयन युगल से प्रभो अनाविल,
वत्सलता का झरना बहता।
कोमल-कर ये कल्पवृक्ष हैं,
इप्सित वर रीता मन भरता।
ज्योतिर्मय बन इन चरणों ने,
अनगिन नैय्या पार उतारी।
बरगद सा आशीर्वर देकर,
उजड़ी उखड़ी सांस संवारी।
गण धरती को रहो पिलाते,
संस्कारों की अमृत प्याली।।