युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगों युगों तक राज करो हे महाश्रमण! महावरदानी।
युगप्रधान युग के वरदानी तेरा शासन है अवदानी।।

सफल अहिंसा यात्रा है यह हृदय-हृदय में गूंजे नारा।
मानव मन के अमन चैन में बोल रहा कर्तृत्व तुम्हारा।
मानव मंगल को अर्पित था साधिक सात वर्ष का हर दिन।
पदचिन्हों को पूज रहे हैं पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण।
तीन देश बीस राज्यों में सजी प्रतिज्ञात्रयी सुहानी।।

गुरुद्वय जन्मसदी अवसर पर आस्थासिक्त अर्ध्य का अर्पण।
सौ दीक्षा वाङ्मय सम्पादन अभिनव आयामों का वर्षण।
अपने अमृत महोत्सव पर निष्ठा पंचामृत पान कराया।
साध्वीप्रमुखा अमृत महोत्सव शासनमाता को विरुदाया।
उत्सवमय है तेरा शासन गण विकास की खिली जवानी।।

जैन आगमों का सम्पादन चले अनवरत महायज्ञ है।
प्रज्ञामय नेतृत्व करे अब महाश्रमण ही महाप्रज है।
जिनशासन के प्रबल प्रभावक आशाओं का भव्य महल है।
संवत्सरी एकता की यह अनुपम अनुकरणीय पहल है।
सम्मुख ‘जैनम जयतु शासनम्’ शुभ भविष्य की नई निशानी।।

सजता है दरबार स्वतः जब आते परिषद्त्रय दरबारी।
दिखलाती है भव्य नजारा सायं सामायिक शनिवारी।
इह भव पर भव मंगल करती सुखद सुमंगल गहन साधना।
भावी बहुश्रुत निर्मित करती महाप्रज्ञ वर श्रु्रताराधना।
अनगिन हैं अवदान तुम्हारे कैसे कहो कहूं कहानी।।