युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
जिनशासन को सरसाया रे, युगप्रधान गुरुदेव,
अंतर का दीप जलाया रे, ज्योतिर्मय गुरुदेव,
गण को शिखर चढ़ाया रे, महाश्रमण गुरुदेव।
नेमा का लाल दुलारा,
लाखों लोगों को तारा,
सरदारशहर चमकाया रे,
युगप्रधान गुरुदेव।।
योगी जैसी है सूरत
निश्छल बालक-सी मूरत
निर्मल गंगा-सी काया रे
युगप्रधान गुरुदेव।।
अगणित गुण गरिमाधारी,
हो वीतराग अवतारी,
जन-जन ने शीश नमाया रे,
युगप्रधान गुरुदेव।।
जीने की कला निराली,
चिहुं दिशि रहती खुशहाली,
उपशम की शीतल छाया रे,
युगप्रधान गुरुदेव।।
जनकल्याणी यात्रा कर,
उपकार किया दुनिया पर,
नित करुणा रस बस्साया रे,
युगप्रधान गुरुदेव।।
तुम हर क्षण मेरे अंदर,
आस्था के महासमंदर,
समता का स्रोत बहाया रे,
युगप्रधान गुरुदेव।।
लय: दीपा वाले नंद---