युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
गणपति श्री महाश्रमण जय हो
युग के नायक युगपुरुष जय हो
तुझको ध्याएं हम - ध्याएं हम - ध्याएं हम हे महाश्रमण।।
गुण के तुम सागर कितने गुण गाऊं
गुनगुनाते गुण गणी के भव से तर जाऊं।।
क्या प्रभु मांगू तू ही जग सारा
धन्य हूं पाकर तुम्हें प्रभु धन्य जग सारा।।
धूप आए तो छांह बन जाना
मुश्किलों की हर घड़ी में राह दिखलाना।।
करुणा निर्झर तुम करुणा बरसाओ
कर में लेकर कर हमारा शिखर पहुंचाओ।।