युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
गुरुवर को आज बधाएं।
युगप्रधान षष्टिपूर्ति का मंगल तिलक लगाएं।
जन्मभूमि सरदारशहर में संयम अपनाया
गुरु तुलसी की कृपा दृष्टि से महाश्रमण पद पाया
महाप्रज्ञ के पटधर बनकर, जन-जन मन को भाए।।
तीन देश की अहिंसा यात्रा, नव इतिहास रचाया
नशामुक्ति, सद्भाव, नैतिकता का संकल्प दिराया
शहर-नगर और गांव सभी में जय महाश्रमण यश गाएं।।
मनमोहक मुख मुद्रा तेरी सब के मन को लुभाती
तेज सूर्य सा आभामण्डल, नई रोशनी लाती
शशि सम उज्ज्वल मुख है तेरा शीतलता बरसाएं।।
तेरी अमृतवाणी द्वारा जन जीवन बदलेगा
तेरी कृपा पाकर, गिरता मानव संभलेगा
तेरे पावन चरणों में हम उन्नति करते जाएं।।
अंतरंग व्यक्तित्व अगम्य है कैसे हम बतलाएं
कर्तृत्व कुशलता से मानवता में नव उन्मेष जगाएं
आकर्षक नेतृत्व प्रभु का गणवन को विकसाए।।
लय: संयममय जीवन हो