युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
जन्मभूमि से गौरव पाते
लोग अनेकों देखे जाते
जन्मभूमि को पुजा सकें
वे विरले ही होते हैं।।
नन्हे से जो कदम धरे थे
प्रतिस्रोत के पथ पर तुमने
देखो बनकर उभरे हैं वो
दिव्य तेजोमय ज्योतिचरण।।
‘मोहन’ से मोहित है दुनिया
मुदित वदन ‘मुदित’ को देख
प्रेम से अभिभूत ‘श्रमण’ से
महानतम ‘महाश्रमण’ विशेष।।
अनुपमेय आदर्श तुम्हारा
पावनता की शुभ मूरत हो
देव शिल्पी आश्चर्यचकित है
बोलो! किस कलाकार कृत हो।।
नयन नयनाभिराम हैं लगते
मोहकता मुस्कानों से
नयना निरख-निरख है हर्षित
उपकृत जग अवदानों से।।
इक झलक को तरसे लाखों
जैकारा से तृप्त अनेकों
चरण नमन से कार्य सिद्ध है
एक बार तो करके देखो।।
उपमाएं उपमित है तुमसे
विभूतियां विभूषित हो गई
पद से कद बड़ा है तेरा
अभिषेक स्वयं अभिषिक्त हो गया।।
ओ! युगप्रधान गुरुदेव तुम्हारी
कैसे अर्चा हम कर पाएं
हम जुगनू तुम महासूर्य हो
कोटि कोटि निज भाग्य सराएं ।।