युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
गाएं गाएं हम गाएं, युगनायक गाथा गाएं।
युगद्रष्टा गुरूवर पाकर, हम अपने भाग्य सराएं।।
नफरत फैली दिलों में, हिंसा का घोर अन्धेरा।
जन-जन का व्याकुल मन था, तुम लाए नया सवेरा।
की सुखद अहिंसा यात्रा, लाखों-लाखों हर्षाएं।।
श्रममय जीवन विभुवर का, क्षण-क्षण को सफल बनाते
समता, आर्जव, मार्दव से, प्रभु पुण्य पुरुष कहलाते।
पावन पदचिन्ह तुम्हारे, हम भी उन पर चल पाएं।।
गुरुवर क्या जादूगर हो, या कोई दिव्य फरिश्ता
जो भी चरणों में आता, गहरा हो जाता रिश्ता।
युग-युग हम युगप्रधान के, अनुशासन में सुख पाएं।।
लय - ए मेरे वतन---