युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान की महिमा गूंजे, देखो सकल जहान।
हर्षित प्रमुदित दसों दिशाएं, गाएं मंगल गान।
अनुपमेय तेरी गाथाएं, धरती पर भगवान।।
जय जय ज्योतिचरण, तुम्हीं तारण तरण।
है भव-भव तेरी शरण, महाश्रमण।।

पथरीली राहों में, गिरि कंदराओं में, थामें न तुमने ये चरण।
गरजती घटाओं में, झुलसती हवाओं में, मुख पर है समता का वरण।
स्वर्णाक्षर अंकित यात्राओं का इतिहास महान।
विस्मित हो सब शीश नमाएं, आस्था के आस्थान।।

दिव्य तेरा रूप है, जिनवर स्वरूप है,भरता नहीं ये मन कभी।
स्नेह का प्रपात है, मिले दिन-रात है, बाधाएं आती ना कभी।
मंगलपाठ तुम्हारा गुरुवर, ज्यांे अमृत का पान।
दोनों हाथों से जीकारा, सर्व सुखों की खान।।

गुरुद्वय साकार हो, नवयुग आकार हो, तुमसे जुड़ी हर आस है।
शासना में हम बढ़ें, संघ शिखरों चढ़े, गण को समर्पित श्वास है।
मर्यादा का रूप निराला, अनुशासन पहचान।
है आचार अनुत्तर विभुवर, जिनशासन की शान।

लय: अल्लाह वारिमा---