युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
तुम आदि व अंत के, अंत से अनंत के पारगामी
निर्लिप्त, निर्विकार, निस्पृह वीतराग पथ के अनुगामी
हे ज्योतिचरण! प्रभो मुझ मंदिर के हो स्वामी
हे युगप्रधान! तुझ अर्चा कैसे करूं प्रभु अंतर्यामी।।
तेरे चरणों में जो भी आता, जीवन को विकसाता
जिसे ढूंढता जन्मों से, उस मंजिल को है पाता
तुम ही जीवन निर्माता और तुम ही भाग्यविधाता
तेरी कृपा के साये की, क्या गाएं गौरव गाथा।।