युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
युगप्रधान के चरण युगल में, नमन करे जग सारा।
कलयुग में भी देख रहे है, सतयुग का नजारा।।
युगप्रधान
हिंसा के आतप में प्रभु ने, अनुकम्पा छतरी तानी
डगर-नगर में गूंज रही है, नहीं कोई इसकी शानी
मानव में जागे मानवता, पा करके सिंचन तुम्हारा।।
सद्भावों के संस्कारों का, घर-घर दीप जलाया है
नैतिक नीवें गहरी करके, जीवन को चमकाया है
धन्य हुए तुमको पाकर हम, तेरा सबल सहारा।।
षष्टिपूर्ति
किन शब्दों से विभुवर तुमको, तेरा नन्य शिष्य बधाए
कहो, किस लय में प्रभुवर, गुण तुम्हारे गुनगुनाएं
नभ में तारे अनगिन जैसे, अनगिन है वैशिष्ट्य तुम्हारा।।
युगप्रधान व षष्टिपूर्ति का, अनमोला यह अवसर आया
तिथि, वार, नक्षत्र, सभी शुभ, जन्मतिथि में हमने पाया
तेरी सन्निधि में हे स्वामी! तव जन्मसदी का हो उजियारा।।