युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
युगप्रधान प्रभो! तुम्हें बधाएं।
मानो भगवान धरा पर आए।।
मुस्काता मनहारा चेहरा
सजगता का पल-पल पहरा,
आगम वाङ्मय ज्ञान गहरा।
करुणा की नित बहती लहरा,
जन-जन मुख-मुख मंगल गाए।।
विद्या तर्क का अद्भुत संगम
हर स्थिति में समता हरदम
मन वाणी वपु का संयम उत्तम
निशदिन चलता कठिन परिश्रम
महातपस्वी तुम कहलाए।।
अपने आपमें रहते मस्त
सत्कार्यों में हरपल व्यस्त
करते सबका मार्ग प्रशस्त
परिषहों से ना होते त्रस्त
पंचामृत का घूंट पिलाए।।
हे गणनायक धर्म धुरंधर
उन्नति पथ पर बढंू निरंतर
दे दो मुझको शुभ आशीर्वर
बन जाऊं मैं अजर-अमर
गूंजे जय नारे दशों दिशाएं।।