युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान तुम युगों-युगों तक युग को नूतन राह दिखाओ
सकल संघ है सम्मुख विभुवर आध्यात्मिक उन्मेष जगाओ।।

अधरों पर मुस्कान अनवरत, नयन युगल करुणा का निर्झर
पीर पराई सुनने खातिर, कर्ण युगल रहते हैं तत्पर
युवा शक्ति चरणों में नत है, उसको अभिनव गुर सिखलाओ।।

इन्द्रिय संयम विरल अनुत्तर, सिद्ध सभी संकल्प तुम्हारे
धन्य धन्य त्रियोग साधना, तुम जैसे पाकर रखवारे
करे सतत निर्बाध साधना, अन्तर में उत्साह जगाओ।।

सर्दी गर्मी में सम रहते अनुप्रतिकूल परीषह सहते
कहीं कभी किंचित प्रमाद हो मधुर-मधुर वचनों में कहते
सुविधावादी नहीं बनें हम वह सात्विक सदुपाय बताओ।।

भ्रम का तिमिर मिटाने खातिर, भ्रमण करे भूमि पर भास्कर
भव सागर से पार कराओ, आलम्बन तेरे सक्षम कर
श्रद्धा और समर्पण दृढ़ हो, ऐसा शक्तिपात कराओ।।