युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
युग की रग को जो पकड़ सके,
युग पुरुष वही बन पाता है।।
युग उलझन को जो सुलझाए,
वह युग का निर्माता है।।
जिनके इंगित को जग माने,
वह युग प्रधान कहलाता है।।
श्रम बूंदों से जन-मन सींचें,
महाश्रमण वह बन पाता है।।
तप-तप करके संताप हरे,
वह महातपस्वी बन जाता है।।
करुणा छलके जिसके घट मंे,
करुणावतार कहलाता है।।
महायात्रा के महायायावर,
सद्भावों का उपवन महाकाया है।।
व्यसनमुक्ति का बिगुल बजाकर,
नैतिकता का मान बढ़ाया है।।
अवदान त्रयी आलोक बांटता,
युगद्रष्टा वह कहलाता है।।