युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
गंगा यमुना सब मुस्काए मुस्काता सारा संसार,
सागर बाहों में भरकर के करता तुमको प्यार दुलार।
अमल धवल इस कान्तमणि के विजयोत्सव पर,
प्रकृति का पल्लव-पल्लव मिल बजा रहा मधुरी झंकार।।
मानवता के इस महासिंधु का अभिनंदन करते हैं,
विश्व के जियावर कन्दील का अभिनंदन करते हैं।
सबके दिलों को दिलफरोज करने वाले ए बेनजीर,
नभ खुर्शिद और अब्र भी तुम्हारा अर्चन करते हैं।।
इन निगाहों के आइने में एक तेरी ही तस्वीर है,
झूठी महफिल में गुमशुदा जहां की तू ही तकदीर है।
तूफां में डोलती मचलती अथाह तरंगों में
इस किश्ती को थाम ले वह तूं ही नजीर है।