युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
करुणा का अक्षय घट थामे जन-मन को सहलाए।
अनुशासन की पुण्य ऋचाएं मधुरिम सुर में गाएं।।
तेरे नयनों में पलता है नव्य सृजन का सपना
बहे निरन्तर कलकल करता वत्सलता का झरना
मनमोहक मुस्कान अजब अपनापन खूब लुटाए।।
चंदा निशि का रवि वासर का हरते हैं अंधियारा
तेरा आभामंडल बांटे आठ पहर उजियारा
सिद्धांतों से समझौते की बात न मन को भाए।।
देश-विदेशों की धरती पर अभिनव रंग लगाया
यात्राओं का कीर्तिमान गढ़ नव इतिहास रचाया
त्रिसूत्री आयाम शुभंकर स्वस्थ समाज बनाए।।
तुलसी महाप्रज्ञ से पाया अनुभव भरा खजाना
भैक्षव गण की ऊंचाई को शिखरों तुम्हें चढ़ाना
रहो निरामय बनो चिरायु दिल अरमान सुनाएं।।