युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
युग का अभिनंदन स्वीकारो, युगप्रधान हे महाश्रमण।
चिहुं दिशि में गूंजे जयनारा, जय-जय-जय हे ज्योतिचरण।।
युगनायक युगप्रहरी युगनेता, तुम हो युग के चिंतक,
शाश्वत सत्यों के व्याख्याता, युग के तुम हो उन्नायक,
जहां जहां ये चरण टिके, वह माटी महके बन चंदन।।
त्रिआयामी शुभपरिणामी, यात्रा के उद्देश्य महान,
नैतिकता अरू नशामुक्ति, मोहक उद्यान सद्भावों का,
करुणा का निर्झर नयनों में, मिटा रहा जन-जन क्रन्दन।।
तुलसी महाप्रज्ञ से निखरा, जादूई व्यक्तित्त्व निराला,
कलयुग में भी सतयुग सा, नित बांट रहे है दिव्य उजाला,
गतिमान अनवरत रहता है, महाश्रमिक के श्रम का स्पन्दन।।
दुगड़ कुल के गौरव गण में, गौरवमय इतिहास रचाते,
शासनमाता के आभारी, अभिनव उत्सव आज मनाते,
शुभ भावों का अर्घ्य समर्पित, युग-युग जीओ नेमानंदन।।