युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
गाएं दिव्य ऋचाएं दिव्य प्रकाश की
भक्ति में रम जाएं गुरु के नाम की
गण के राम की जय, श्रद्धा धाम की जय
गुरु के नाम की जय, नव आयाम की जय।
भव्य भाल का तेज अनूठा मुखमंडल रूपाला
करुणासागर गुणरत्नाकर प्रवचन अमृतपयाला
परमप्रतापी त्रिभुवनव्यापी, पथदर्शन है निराला
तुलसी महाप्रज्ञ ने निज हाथों से तुम्हें संवारा
मिलकर करके जय बोलो युगप्रधान की।
अवदानों की अकथ कहानी शासन शिखर चढ़ाया
यात्रा अहिंसा सफल प्रयोजन देशाटन मन भाया
गुरु अलबेला हर दिन मेला जन जीवन महकाया
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण श्रम का स्रोत बहाया।
सभी प्रणम्य है युगप्रधान वे स्मृतियों में हम लाएं
तुम हो ज्ञानी श्रुतसंधानी महाश्रमण कहलाए
सृजन तुम्हारा सबसे न्यारा संपादन गहराए
दिव्य शक्तियां रहे तुम्हारे हर पल दाएं-बाएं।
जन्मधरा मंे देव विराजे तीर्थंकर सम गाजै
शासनमाता के साकार सपने घोष विजय के बाजै
तकदीर जागी, चरणों के रागी, हम अनुरागी, बने वीतरागी
आशीष दो गुरुराजै, कदम-कदम पर साथ रहेंगे दिल की ये आवाजें।