युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
उगाओ गणिवर! स्वर्ण विहान।
धरती को तुम पर अभिमान।।
कसो प्रभुवर वीणा के तार,
उठे मंगलमय फिर झंकार,
पुनः हो प्राणों का संचार,
छंटे मूर्च्छा का सघन वितान।।
सिसकियों पर छाए सित हास,
कसक पर विजय वरे उल्लास,
खिले पतझड़ में नव मधुमास,
करो पुरवैया को आह्वान।।
आर्य के सक्षम कर्मठ हाथ,
दसों आचार्यों का बल साथ,
हुआ है तुमसे संघ सनाथ,
सफल सार्थक हो हर अभियान।।
गगन में जब तक सूरज चांद,
चिरायु अरुज हो नेमानंद,
बरसता रहे सदा आनंद,
दिशाएं करती जय-जय गान।।