युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
हे युगप्रधान! हे युगद्रष्टा! तव चरणों में शत्-शत् वंदन।
हे महातपस्वी महाश्रमण! वंदन अभिवंदन अभिनंदन।।
अनंतशक्ति के महास्रोत सबमें ऊर्जा संचार करो अब
तन से मन से और वचन से दुर्बल को बलवान करो अब
पौरुष की आस ले हाथों में तोड़े कर्मों के सब बंधन।।
हिमगिरि दृढ़ संकल्पशक्ति के मजबूती का पढ़ा दो।
कायरता से क्लीव बने मानव को ऊर्जावान बना दो
दर्शन ज्ञान चरण संयम से मिट जाए जन-जन का क्रंदन।।
समता के महासागर प्रभुवर समरसता का पान करा दो।
चंचल विचलित अंतःस्थल में स्थिरता का आशीर्वर दे दो
धर्मध्यान से सरोबार बन करूं मुक्ति से ही अनुबंधन।।
जन्मभूमि में आप पधारे धरती का कण-कण है पुलकित
जय-जय महाश्रमण नारों से गुंजित दशों दिशाएं स्पन्दित
सत्यं शिवं सुंदर भैक्षवशासन जिनशासन का स्पन्दन।।