युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
ज्योतिचरण की ज्योति रश्मियां ज्योतित करती भाग्य सितारा।
भू नभ में गूंजेगा अविरल जय जय महाश्रमण यह नारा।।
भोलेे बालक सी निश्छलता जन-जन को आह्लादित करती
गणिवर की गरिमामय गुरुता पल-पल पुण्य प्रेरणा भरती
महातपस्वी महाश्रमिक की विभुता का है भव्य नजारा।।
वीतरागता के वैभव से भूमंडल के बने कुबेर हो
मानवता के महामसीहा! करुणा के तुम उत्तुंग सुमेर हो
मनमोहक वरदाई मुद्रा तोड़े आग्रह-विग्रह कारा।।
विनयशीलता की नजीर हो वत्सलता के पारावार
नयनों के अमृत वर्षण से होती अहंकार की हार
युगप्रधान के अभिनंदन में प्रमुदित है नंदनवन सारा।।