युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

अक्षत कुंकुम थाल सजाएं, भगवन! तुमको आज बधाएं।

अमृतमय उत्सव अनुपम यह शुभ भावों की भेंट चढ़ाएं।।

युगद्रष्टा युगसृष्टा तुम हो युग के भाग्यविधाता
सुलझाते हो सकल समस्या जन-जन के संबोध प्रदाता
जीवन का आदर्श अलौकिक पल-पल पुण्य प्रेरणा पाएं।।

मुस्कान भरी मोहक मुखमुद्रा, सबके मन को भाती है
धरती के भगवान तुम्हीं, हर दिल की धड़कन गाती है
प्रेम के परम पुजारी प्रभुवर! बिना रुके नित चलते जाए।।

चरण टिके जहां भी तेरे, माटी चन्दन बन जाती है
बंजर भूमि बने उर्वरा, रयामल फसलें लहराती हैं
प्रभु की प्रवर अहिंसा यात्रा, कितने कीर्तिमान रचाएं।।

तेरी पावन चरण सन्निधि, बदले जन-जन की तकदीर
हिन्दु मुस्लिम सिक्ख ईसाई, हर मानव में तेरी तस्वीर
युगों-युगों तक युगप्रधान की दुनिया गौरव गाथा गाएं।।