युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
महाश्रमण से गणमाली पा जाग उठी तकदीर हमारी।
पाकर सुखमय छांव तुम्हारी खिल गई मन की क्यारी।।
शुभ कर्मों का योग मिला है भैक्षवशासन संघ मिला है।
मर्यादा की सौरभ पाकर जीवन उपवन खिला-खिला है।
संघ सारथी महाश्रमण पा मिट गई मन की दुविधा सारी।।
मां नेमा का नयन सितारा मोहन लगता प्यारा-प्यारा।
मृदुवाणी मुस्कान मनोहर पथदर्शक लगता मनहारा।
सहनशीलता बड़ी विलक्षण पथ की हर बाधाएं हारी।
गुरु तुलसी का वरदहस्त पा मुनि सुमेर से पाई दीक्षा।
महाप्रज्ञ तुलसी से पाई समय-समय अनगिन शिक्षा।
मुदित बने ना सुविधावादी दी शिक्षा प्रभु ने मनहारी।।
महाप्रज्ञ के सक्षम पटधर महाश्रमण गण के हैं विभुवर
तेरी सुखद सन्निधि में प्रभु पाते हैं हम छांव शुभंकर
संघ सुमेरु की सान्निधि में जीवन बगिया सुखकारी।।
षष्टिपूर्ति का अवसर पावन समवसरण रचना मनभावन
भैक्षवगण में उमड़-घूमड़ कर बरस रहा खुशियों का सावन
जय-जय ज्योतिचरण की गूंजें चिहुंदिशि यशगाथा जयकारी।