युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
भिक्षु चदरिया ओढ़ वदन पर, शासन ध्वज नभ में फहराया।
तुलसी महाप्रज्ञ पटधर का गौरव जग ने गाया।।
जन्मधरा पर महाश्रमणी ने मृदु स्वर में उचराया था
आहिस्ते से उठो आर्यवर यह कह तुम्हें बुलाया था
सक्षम हाथों में गण डोर थमाया।।
दीवसमा आचारज होते गण को दीपित करते हैं
उवसम सारं सामण्णं की ऊर्जा सबमें भरते हैं
उवणय निउणं का सुंदर सार बताया।
शरण प्रतिष्ठा गति है गुरुवर अत्राणों के त्राण हैं
निष्प्राणों को स्पंदित करके भरते उनमें प्राण हैं
गूंगे को वाणी दे पंगू को शिखर चढ़ाया।।
युग की नब्ज पकड़ कर गण को अनुरूप चलाया है
नानाविध अवदानों से गण गगनांगण में छाया है
युगप्रधान पद को शोभाया, शासन माता ने विरुदाया।।
लय: झिलमिल सितारों का---