युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
ज्योतिचरण! हे महाश्रमण! श्रीचरणों में हम शीश नमाएं।
युगप्रधान उत्सव मनभावन जनता सारी हरसाएं।।
मात-तात सम गुरूवर तुम हो तुम ही तारणहारे हो
भीर-वीर गंभीर तुम्ही हो हम सबके रखवारे हो
तुलसी जैसी चाल-हाल है क्या-क्या महिमा हम गाएं।
तेरे द्वारे जो भी आता वह पावन बन जाता है
तेरी मुस्कानों को पाकर संताप मुक्त हो जाता है
सतयुग सी सुखमय तव सन्निधि शांत सुधारस बरसाए।
पदयात्री बन करके अहिंसा यात्रा बिगुल बजाया है
कन्याकुमारी सागर तट पर नव इतिहास रचाया है
डगर-डगर और नगर-नगर में ज्योतिचरण बढ़ते जाए।
लक्ष्य तुम्हारा बहे हृदय में सद्भावों की निर्मल धारा
अनुकंपा की जगे -चेतना व्यसन मुक्त हो जग यह सारा
युगों-युगों तक गुरुवर तेरी दुनिया गौरव गाथा गाए।