युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
आदर्श साधक ज्ञान आराधक जीवन तेरा है अभिराम
उपशम उपासक सौम्य साधक संयम तेरा बड़ा ललाम
खूबियों का खजाना जीवन किससे है अनजाना
हे युगप्रधान! हम करें कामना पग-पग विजय वरो हर याम।।
प्रभु महाश्रमण इस संघ में तुम अलौकिक चिराग हो
तेरी उत्कृष्टतम साधना देख हमारे में भी विराग हो
विराग का अनूठा ठाठ बोना मनुज क्या बतलाए?
तेरी शिक्षाओं को अपना सके ऐसा सबमें अनुराग हो।।
धैर्यबल धरती जैसा, संकल्पों में हिमगिरि ऊंचाई
मनोबल मंजुल प्रभुवर का तपोबल से जागृत पुण्याई
ओज अजब है पोज गजब है तेरा नव्य निराला
अहिंसा यात्रा की रची दिव्य कहानी वरदाई।।
विनय, समर्पण उच्च कोटि का सकल संघ में भरे प्रेरणा
समय प्रबंधन, कौशल अनुपम जागृत है हर सुप्त चेतना
अल्पभाषिता, गोपनीयता नापी मानों सागर गहराई
युगप्रधान का उत्सव अभिनव स्वीकारो भावों की स्पंदना।।