युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
युग को बोध कराने प्रभुवर!
धरती पर अवतार किया है।
इसीलिए शासन माता ने
युगप्रधान सम्मान दिया है।।
युग अनुरूप तुम्हारा चिंतन,
देता सबको नव संजीवन।
युग की जटिल समस्याओं को,
हल करने नित करते मंथन।।
निज मेधा से शाश्वत सत्यों का अनुसंधान किया है।।
युग की वल्गा थाम निरंतर,
युग धारा को मोड़ दिया है।
मैत्री करुणा के धागों से,
टूटे दिल को जोड़ दिया है।
दिग् विजयी यात्रा वरदायी युग को वर आलोक दिया है।
चरण युगल में अर्पित सबकुछ,
तुम ही जीवन के निर्माता।
मंगल गाएं तुम्हें बधाएं
तुम हो मेरे भाग्य विधाता।
तेरी पावन सन्निधि में प्रभो! प्रतिपल अमृतपान किया है।।