युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
जन्मोत्सव की शुभबेला में नाच उठा मन मयूर हमारा।
रोम-रोम संगीत सुनाए युगप्रधान उत्सव मनहारा।।
उदित हुआ है महासूर्य यह दुगड़ परिकर के आंगन में
मुदित हुआ है जन-जन का मन कल्पवृक्ष लख प्रांगण में,
मिटा अंधेरा अंतर्मन का फैला चिहुंदिशि नव उजियारा।।
सेवा में है अष्ट मंगल, अष्ट सिद्धियां साथ तुम्हारे,
अष्ट संपदा वर्धमान हैं नव निधियां नित द्वार तुम्हारे,
प्रतिपल चमक रहा है प्रभु की पुण्याई का दिव्य सितारा।।
पांव-पांव चलकर के तुमने जन-जन का उद्धार किया है
दृढ़ संकल्प समुन्नत तेरा हर सपना साकार किया है
धरती नभ में गूंज रहा है महाश्रमण जय नारा।।
शासन माता के श्रीमुख से युगप्रधान सम्मान मिला है,
वर्धापन की पावन बेला तीर्थ चतुष्टय खिला-खिला है,
युग-युग जीओ हे युगनायक! युगों-युगों तक मिले सहारा।।