युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
युग आस्था के दिव्य धाम युग करता शत्-शत् वंदन।
युगद्रष्टा युगनायक है युगप्रधान करते अभिनंदन।।
गांव- गांव में नगर-नगर में नैतिकता की अलख जगाई,
पांव-पांव चलकर जन-जन तक संयम सुरसरिता पहुंचाई,
कैसे हो उद्धार मनुज का टूटे भवसागर के बंधन।।
विपदाओं के सघन तिमिर में पौरुष की लौ जली प्रकाम,
संघर्षों की घोर घटा में संकल्पों का तेज ललाम,
श्रद्धामय उन्मुक्त गगन में गणवन महका जैसे चंदन।।
समता के उत्तुंग शिखर पर चरण तुम्हारे है गतिमान,
जीवनशैली बने संतुलित चले प्रगति के नव अभियान,
मिट जाए अज्ञान अंधेरा अंजो नयनों में श्रुत अन्जन।।
आर्यप्रवर के उपकारों से उपकृत है सारा संसार,
ज्योतिचरण प्रभु महाश्रमण की चिंहुदिशि हो रही जय-जयकार,
सांस-सांस पर नाम तुम्हारा प्राणों में भर दो नव स्पंदन।।